पहले Why TCS करता रहा, बाद में Chennai rocks और आज-कल सर्च-इंजिन :P चला रहा है मोटा। पहले खुद को आधा बंगाली और आधा उड़िया बतानेवाला ये कमीना आज-कल खुद को पूरा उड़िया बता रहा है, इसलिए दिब्येनदु type के लोगों से अनुरोध है कि कृपया इससे दूर रहें कयोंकि अब ये बच्चा नहीं रहा, खुद को मर्द बताने लगा है। मुख्य मुद्दा यह है कि 4th May को मैं, प्रवाल, ज़ुबिन, चोखु, विद्या, टोपा सब लोग मोटे को अंतिम विदाई देने भुवनेश्वर में एकत्रित हुए… सबकी आँखें सजल थीं कि मोटा अब कुछ ही पलों का मेहमान है। चिराग बुझने से पहले जैसे दीया फ़ड़फ़ड़ाता है उसी तरह मोहंती भी अपनी बतीसी दिखाकर फ़ड़फ़ड़ा रहा था।
बारात शुरु होने से पहले सबने कमरे में बैठकर फ़लाहार किया और उसके बाद थोड़ा सा सुरापान… चोखानी जब से अमरीका से होकर लौटा है, उसे सुंदरी के बिना सुरा अधूरा-सा लगता है पर अन्य लोगों की गुज़ारिश पर उसने थोड़ा-सा पिया और थोड़ा शर्ट पर गंध फ़ैलाने के लिहाज़ से छिड़क लिया। बारात जब निकली तो चोखु भाई साहब के अंदर का सारा टैलेंट उफ़ान मारने लगा। गाना शुरु हुआ:
ओह मेरी जान ओह मेरी जान
मेरे को मजनु बना कर
कहाँ चल दी कहाँ चल दी
प्यार की पुंगी बजा कर
और फ़िर जो चोखानी शुरु हुआ तो काहे को इसे करीना के अलावा कुछ याद रहेगा... थिरकना इसका तभी रुकता था जब म्युजिक… बीच में रुकना गले की राह से आत्मा तक गए हुए किंगफ़िशर के बोतल की शान के खिलाफ़ था… प्रवाल जैसे पहाड़ से भी टकराते इसे कुछ हिचक नहीं थी। ज़ुबिन भाई बीच-बीच में बगल की बारात में भी नाच आते थे, उन्हें सबकी खुशी की चिन्ता थी… आज किसी की भी बारात वहाँ से गुजरे ज़ुबिन भाई नृत्य-कला का नमूना ज़रुर पेश करेंगे...टोपा as usual फोन पर client dealing करने में लग गया। हद तो तब हुई जब मोटा को हमने रथ से उतारा और नाचने को मजबूर किया। ये साला “इक पल का जीना ” का स्टेप करने लगा। भाई शुक्र मनाओ कि सुगन्या वहाँ नहीं थी, नहीं तो शादी से पहले तालाक क्या होता है- हम देखकर ही लौटते। जल्दी से हमने इसे समझाया- बेटे तु बल्लु सर के रूम में नहीं है… शांत हो जा और अंदर चल ले फ़िर प्रवाल शादी की एक विधि के अनुसार मोटे को अकेले उठाकर के पहली मंजिल तक ले गया जो कि हम में से और किसी के वश की बात नहीं थी।
सुगन्या को अकेले देखकर सभी मोहंती को भुलकर उसके पास आ बैठे। वहाँ पता चला कि उसे हिंदी नहीं आती तो ज़ुबिन ने पूछा- तुम कौन सी तारिख को यहाँ से जाओगी? सुगन्या बोली-what? यहाँ आकर तुम्हें कैसा लग रहा है? what… मोहंती का दूसरा नाम तुम्हें पता है? what… फ़िर मोटे से हमने पूछा—भाई क्या होने वाला है तेरा? वीरे, कुछ टाइम में ही ये हिंदी क्या उड़िया भी बोलने लगेगी, देखता जा। रात को मोटे का बलिदान हमसे देखा ना जा सका इसलिए हम सोने आ गए।
अगले दिन हम पूरी-कोणार्क भ्रमण पर निकले। कोणार्क जाके प्रवाल को असीम शान्ति मिली और हमें भी। मैं और चोखु प्रवाल को अलग छोड़ रहे थे कि वो अकेले घुमे पर साला वो इतना बेवकूफ़ (जो कि बोलना ज़रूरी नहीं है) है कि हमें पकड़कर साथ ले गया। कोणार्क से लौटते हुए हमने मोटे के लिए गिफ़्ट खरीदा, जिसे देखकर मोटा रात भर सो नहीं सका... रात को वही हुआ जो आज तक होता आया है- आज प्रवाल होश में नहीं था जैसे कल चोखु...
अगले दिन हम सब अलग-अलग अपनी-अपनी जगह को चल दिए, फ़िर से एक-दूसरे से मिलने का वादा करके… पता नहीं अब कब मिलें…
वाह, बस मज़ा आ गया...... कसम से ....ऐसा लगा की मै वहाँ मौजूद था.....!
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