Tuesday, May 22, 2012

Corbett Nainital Trip


यात्रायें चलती रहीं पर लिखने का वक्त न होने का खूबसूरत बहाना भी साथ चलता रहा। तबीयत से सोचने पर पता चला कि क्यूँ नहीं लिख पा रहे और तभी समाधान भी सामने आया। खैर! एक नये उमंग के साथ हम दिल्ली से काठगोदाम जानेवाली ट्रेन पर बैठे। बगल में बैठे भाई-साहब करीब 50 वर्ष  के थे। उनकी एक अनूठी आदत थी-  वाएँ हाथ की ऊँगली को कान में घुसाकर दाएँ हाथ से दूसरे कान को थपथपाते रहते थे जैसे कोई वाद्य-यंत्र बजा रहे हों। उनकी धर्मपत्नी जब आँख के एक कोने से भौं सिकोड़कर उनको देखतीं तो स्वत: उनकी मुद्रा सामान्य स्वरुप में आ जाती। बगल में एक शिशु अपनी माँ की गोद में खेलते खेलते भाई-साहब को पैर से मार रहा था और वे इस पिटाई का भरपूर आनन्द ले रहे थे। बाद में वो घुमते-घामते हमारी सिट पर भी आया पर पिटाई की पात्रता उसने हमें देना ज़रुरी नहीं समझा। उसकी भावाभिव्यक्ति थोड़ी संभ्रमित सी थी, ना हँसता था ना रोता था, बस अपलक हर तरफ़ देखता रहता था। उसकी मोटापा ठंढ से हमें ज़रुर बचा रही थी।  कुछ समय दया-भाव से बिताने के बाद जब वो पुन: अपनी माँ की गोद में गया तो भाई-साहब पे लातों की बरसात करने लगा, वे बस मुस्कुराते रहे। हम हल्द्वानी में ट्रेन से जब उतरने लगे तो उसने आँ-ऊँ करके हमें अलविदा कहा।

CHILD:


हल्द्वानी स्टेशन से बाहर निकलते ही कैब-वालों ने हमपर धाबा बोल दिया। सर, नैनीताल 600 में पहुचा देते हैं, मैं बढ़ने लगा तो दूसरा बोल पड़ा- आ जाओ सर, 500 ही दो एक-दम झकास A.C. चलाते हुए ले चलूँगा, गाड़ी में पंखा तो है नहीं साला  A.C. चलाने की बात कर रहा है- पूरा माहौल मुझे राजु श्रीवास्तव की याद दिला रहा था। जब सब थोड़े शांत हुए, फ़िर मैने पूछा- कार्बेट (Corbett) का कितना लोगे? एक ने बोला- 900, दूसरा-750 दे देना, तीसरा- 600 भईया, भीड़ से एक दुबला-पतला आदमी हाथ हिला रहा था- 500 बस। हमने उसके कैब में सामान डाला और पीछे की सीट पर बैठ गए। वो गाना बजा दिया- ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो… कैब चल पड़ी पीछे काला धुआँ कुछ पल के लिए दिखा फ़िर गायब हो गया।



रास्ता निस्संदेह सुंदर था। गाँव के खेतों में गेहूँ की बालियाँ लहरा रही थीं, लीची और आम के अनगिनत बगीचे फ़ल की प्रतीक्षा में अभी फ़ूलों से लदे पड़े थे। लोगों के चेहरे पर शांति और शुकुन था। पूरे वातावरण में ऊर्जा ही ऊर्जा अनुभव हो रहा था। शहर से दूर मेरा गाँव पर लिखा हुआ निबंध मस्तिष्क में कौंध गया। कुछ आगे जाने पर जंगल शुरु हुआ। पतझड़ के कारण पत्ते ज्यादातर या तो सूखकर पेड़ से लटक रहे थे या फ़िर सड़क पर हवा की सहायता से उलट-पुलटकर दौड़ रहे थे। जब हमारी गाड़ी उनके मध्य से गुजरती तो वे हवा में खुशी से उछल पड़ते। मेरी इच्छा इन्हीं रास्तों पर किसी निर्जन झोपड़ी में बने ढाबे में खाने की थी पर कविता ने हाइजिन का वास्ता देकर खाने नहीं दिया और अंतत: हम जिस जगह पर खाए वहाँ बेशक बाहियात खाना था पर वहाँ के लोगों ने हमारे होटल का रास्ता ज़रुर बताया। 10 मिनट में हम अपने रिजौर्ट (resort) में थे|



अगली सुबह हम सफ़ारी यात्रा पर निकले। जानवर दिखना पूरी तरह से वहाँ भाग्य पर निर्भर करता है पर हमें भाग्यशाली होने का सुअवसर नहीं मिला। फ़िर-भी मज़ा आया। अनुभव जंगलों में दौड़ने-भागने का तो बचपन से था पर खुली सफ़ारी में धूल उड़ाते कच्ची पगडंडियों पर जाने में कुछ अलग-सा महसूस हुआ। रास्ते में एक पतली पहाड़ी नदी में सफ़ारी रोककर बहते पारदर्शी पानी में बिछे पत्थरों के बिछावन पर शांत बैठना अच्छा लगा। इन्हीं जंगलों में सीताजी ने लव-कुश को जन्म दिया था और इसीलिए इस जगह का नाम सीतावनी पड़ गया। आज भी यह जगह अद्भूत है। एक प्राचीन मंदिर उनकी गाथा आज भी गा रहा है



सफ़ारी के बाद जाकर हमने मैराथन का किट लिया और वापस रिजौर्ट लौट गए। शाम में नदी में बने एक मंदिर में जाकर थोड़ा समय व्यतीत किया। अगली सुबह मुझे मैराथन  दौड़ना था। 5 KM से ज्यादा आज तक मैं दौड़ा नहीं पर बस एक ही इच्छा थी कि किसी तरह समय के अंदर 21 KM पूरा करना है... दौड़ शुरु हुई, रास्ता हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित था… बीच-बीच में बंदर आ-जा रहे थे… माहौल खुशनुमा था…प्रतिस्पर्द्धा का भाव 400-500 लोगों में से किसी में नहीं था… सब एक दूसरे की हौसला आफ़जाई कर रहे थे…वहाँ मैने दौड़ने से ज्यादा हर एक क्षण को जिया और शायद उसी वातावरण की प्रेरणा के कारण मैं समय के अंदर पहुँच गया। ये कार्बेट का मानसिक तौर पर सबसे सुखद पल था और शारीरिक तौर पर सबसे दुखद। कविता को थोड़ी तो आशा थी कि मैं आ जाऊँगा पर कहीं –कहीं उसे डर भी था पर मुझे आता देखकर उसे भी लगा कि माऊँट आबू ना जाना थोड़ा तो फ़लीभूत हुआ।




वहाँ से लौटकर हम नैनीताल के लिए निकल पड़े।  हमारा ड्राइवर काफ़ी बातूनी था। सर, वहाँ पिछले साल एक बाघ ने गाँव में आकर बच्चे को मार डाला था… B.J.P. की सरकार ही उत्तरांचल में अच्छी थी सर…सचिन अब कहाँ खेल पाता है, उमर हो गई अब उसकी… एक हमारा ज़माना था और एक आज के बच्चे हैं, बड़े-बूढ़ों के सामने कोई तमीज़ ही नहीं बची है उनमें। उसकी बातों ने सफ़र को थोड़ा मनोरंजक बना दिया। घाटी में जिस ढाबे की छत पर बैठकर हमने गोभी के पराठे खाये, वहाँ से सामने का दृश्य चित्त को बिल्कुल शांत कर देनेवाला था- बड़े-बड़े हरे पेड़ों के बीच गोल घुमती काली सड़कें, दूर एक पतली-सी कच्ची पगडंडी, विशाल पर्वत शृंखलाएँ और सन-सन करती तेज़ हवाएँ। दिल मन्त्र-मुग्ध था कि तभी छोटू बोल पड़ा- पराठा रेडी सर। हम खाकर फ़िर वहाँ से आगे कि ऊँचाई तय करने निकल पड़े।



शाम हमारी नैनी झील में नौका-विहार करने में बीती। केवट ने बताया कि वो सामने वाली पहाड़ी पर रहता है जहाँ उसकी एक छोटी-सी दुकान है, जिसे उसकी माँ चलाती है… वो चार भाई है और सभी इसी पेशे में लगे हैं। एक किम्वदन्ति के अनुसार यह झील सामने वाली पहाड़ी से निकला है जो पहले कभी यहाँ से करीबन 2 KM दूर हुआ करती थी…नाव चलता रहा और उसकी बातें भी। उधर सूरज पहाड़ के पीछे ढब से गिर गया। गोधूलि में हम माल-रोड पर घुम रहे थे जो कि नैनी झील के समानान्तर बनी हुई है और यही इसकी सुंदरता का मुख्या कारण है। धीरे-धीरे सम्पूर्ण प्रकृति रात के आगोश में चली गई और आकाश के साथ-साथ पहाड़ियों  पर भी झिलमिलाते सितारे बिछ गए- हमारे लिए यह एक इशारा था कि अब होटल चला जाए|



अगली सुबह नैनीताल के आस-पास की जगहों को हमने देखा और रात में बस से निकल पड़े। अगले दिन हम दिल्ली में थे- सीमेंट और पत्थरों से घिरे हुए… गाड़ियों के धूएँ में खुशबू का आनन्द लेते हुए… कोलाहल अब भी था- बस हवाओं और पन्छियों की जगह इन्सान आ गए थे।




10 comments:

  1. Kya Baat hai ladke, Maza aa gaya. Purani yaadein taza ho gayin jab jar churro me hum Haldwani aya jaya karte the Hawrah-Kathgodam pakadne ko. Nice memories of my last Corbet trip came flashing . Wonderful job.

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  2. Bahut khusi hai amit tum aaj bhi likh rahe ho... Aur Accha likh rahe ho..Likhne ki shaili...Rekha chtran ...sab bahut badhiya hai.. Aas paas ka mahaul...sab khub likha hai...shuru se antim tak Paathak ko baandh kar rakhne ka accha intejaam kiya hai..
    Suraj Dhab se gir Gaya...umda laga.
    Bachhe aur budhe ka chitran.. bahut badhiya..

    Likhete raho...aasha hai tumhe Kavita Bhabhi se bhi Prashansha mil rahi hai..

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  3. Hi Amit,

    Bohot achi jagah hai Nainital. Me and my 3 friends went to Rishikesh, Mussoorie and Dehradun lekin Nainital ka trip nahi ho paya. Photos share karne k liye dhanyawaad. :)

    P.S. Do check out & vote for my entry for Get Published.

    Regards

    Jay
    My Blog | My Entry to Indiblogger Get Published

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    1. I have been at those places also jay.. Even Mussoorie is so beautiful.. Good luck for Nainital :)

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  4. Nice Clicks and description . The last photo thrilled me.

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  5. More than Nainital, I liked the way you write, it is very interactive in nature. Keep writing good stuff :)

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  6. Ah, spotting wildlife totally depends on luck, as you've rightly noted. But, yes, the whole experience of riding around in the open jeep makes the trip worth it! I, too, just came back from a trip there a few weeks back.
    Here's the link: http://medhakapoor.blogspot.in/2013/01/travellers-tales-ii-uttarakhand-diaries_25.html

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