औली उत्तरांचल के पहाड़ों में बसा एक छोटा सा कस्बा है जहाँ सूरज पूरब में ही उगता है और पश्चिम में ही अस्त होता है, लोग दिल्ली से पहले सो जाते हैं और पहले जाग जाते हैं। मनोवैज्ञानिक खासियत अन्य विकसित जगहों की तुलना में यह है कि वहाँ लोग इंसानों की अपेक्षा जंगली जानवरों से ज्यादा डरा करते हैं। राजनैतिक तौर पर यहाँ भी अपने नेताओं को रोज सुबह-सुबह अखबार खोलते ही गाली देते हैं और फ़िर दिनचर्या आरंभ करते हैं। एक बड़ा फ़र्क पर अभी भी कायम है कि मानवीय मूल्यों का पतन हमारे जैसे बुद्धिजीवियों से थोड़ा कम हुआ है। शीतकालीन प्राकृतिक सौंदर्य ईश्वर ने इस जगह को कूट-कूटकर दिया है। हिमपात इस जगह को स्कींग, स्नो-स्केटिंग जैसे पाश्चात्य खेलों के लिए भी काफ़ी उपयुक्त बना देता है और नयन-सुख के लिए भी।कुल मिलाजुलाकर इस जगह को अच्छा कहा जा सकता है, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं।
रात को हमारी टोली दिल्ली से निकली और सुबह हरिद्वार से। रास्ता इतना सुंदर शुरु होता है वहाँ से कि हमारे गाँव का मित्र पुलेन्द्रा भी देखकर कवि बन जाये पर दुर्भाग्य से वह हमारे साथ सफ़र नहीं कर रहा था। ऋषिकेश से आगे बढ़ते ही भारत सरकार की सड़कें कुछ ज्यादा ही हम पर मेहरबान हो गईं,बीच-बीच में अकारण ही हमें हवा में उछाल दे रही थीं। गंगा का पानी उपर से बिल्कुल हरा दिख रहा था, ज्यों-ज्यों हमारी गाड़ी ऊपर जा रही थी, त्यों-त्यों गंगा और पतली होती हुई दिखाई पड़ रही थी पर उसी हरे रंग में। देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम था- दोनों आकर एक-दूसरे से नब्बे डिग्री पर मिले और गंगा बन गई। हम आगे बढ़ते गये, रुद्रप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग- अलग-अलग रुप में सारे प्रयाग-बंधु मिलते रहे और बिछड़ते रहे पर हर जगह पर एक बात समान रुप से दिखी- संगम! चमौली पहुँचते-पहुँचते 3 बज चुके थे। वहाँ से कुछ आगे एक पहाड़ी गाँव में मेला लगा हुआ था। ढेर सारे प्रेमचंद के हामिद मुझे एक साथ दिखाई दिए, किसी के हाथ में लंबा बलून था, किसी के हाथ में बंदूक तो किसी की आँखों पर प्लास्टिक का गुलाबी चश्मा। इस तरह का परिवेश पहाड़ों में देखना काफ़ी रोचक था। वहाँ से आगे बढ़े तो सीधे जोशीमठ जाकर हमने अपना पड़ाव डाल दिया। हरिद्वार से जोशीमठ का सफ़र आँखों के लिए जितना सुखद है , शरीर के लिए उतना ही दुखद, अंग-अंग विद्रोह की भावना से कह रहे थे- अब और नहीं!!
रात को सोने से पहले हमने टैक्सी बुक कर लिया था इसलिए अगली सुबह आशीष हमारे लिए सूरज से पहले ही दस्तक दे चुका था - चेहरे पर गढ़वाली मुस्कान, कद से सामान्य और अन्य चालकों की तुलना में मितभाषी , जिसकी बातें एक तो कम होती थीं और जो होती थीं वे सामान्य इंसान की श्रवण शक्ति से परे था। शायद कुत्ते का कान होना उसके लिए पूर्वापेक्षित था। जब हम निकले तो आसमान साफ़ था, धूप की रौशनी में सारी बादी नहायी हुई थी।जोशीमठ से जलेबिया सड़क पूर्ववत् ज़ारी थी और शरीर के विद्रोह को एक बार फ़िर से कुचला जा रहा था। सामने की पर्वत-श्रृंखलायें किसी कलाकार की पेंटिंग याद दिला रही थीं, जिन्हें देखकर मुझे अपने अस्तित्व के बौने होने का एहसास हो रहा था। कुछ ही पल में हम रोप-वे की मदद से औली में थे। यहाँ की शान्ति को भी नोएडा की तरह कुछ कुत्ते भंग कर रहे थे पर वहाँ के स्थानीय लोगों के ढेलेबाजी में प्रवीण होने के कारण उनका शांति-भंग कार्यक्रम ज्यादा चल नहीं पा रहा था।औली में एक कृत्रिम झील है, जिसके किनारे से नंदा-देवी पर्वत का दृश्य काफ़ी सुंदर था पर हम इस बात से दुखी थे कि बर्फ़ हमें नहीं मिला! मैं कोशिश कर रहा था कि इस नीरव शांति से ही संतोष किया जाए और काफ़ी हद तक मेरी कोशिश सफ़ल भी रही।
बर्फ़ तो नहीं मिला पर उनसे ढँकी कुछ चोटियाँ दिखीं जो अनुपम थीं... खाली हाथ लौटे पर यादें खाली नहीं थीं...हम लौट रहे थे, कुछ बच्चे एक जगह पर ताँता लगाकर डुगडुगिया बजा रहे थे, कुछ बंदरों को कुत्ते खदेड़ रहे थे पर बंदर पेड़ पर चढ़कर किकियाते हुए कुत्तों को चिढ़ा रहे थे, एक बूढ़ा आदमी एक हाथ से डंडा पकड़कर पहाड़ चढ़ रहा था और दूसरे हाथ से हमारे ड्राइवर को कुछ गंदे इशारे कर रहा था, हम कुछ ही पल में अपनी सीट पर सो रहे थे...
How to Reach:
डेल्ही -> हरिद्वार -> जोशीमठ -> औली
(Many private buses/Sumo start early in the morning from Haridwar Bus stand। Hire private cab fromHaridwar to Joshimath (~4000Rs.))
Places nearby:
Joshimath/Tapovan/Pandukeshar/Badrinath(closed in winter)/Narsingh Temple
Where to Stay:
GMVNL guest house Joshimath/Auli
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Shabd chitra anutha hai .. Har ek shabd ke saath
ReplyDeleteMeri Yatra aankho ke saamne Javan ho rahi thi.
Good travelogue ...keep writing...
Thanks Brajesh-Bhaai :)
ReplyDeleteयात्रा वृत्तान्त लिखने की शैली अच्छी है आपकी. स्वागत.
ReplyDelete(Pls remove Unnecessary Word Verification.)
सुन्दर औली का तो कहाँ ही क्या
ReplyDeleteथोडा वृतांत से लिखा कीजिये कृपया
Thanks for your feedback Abhishek and Fakira!
ReplyDeletei never thought you could do this also... i mean nice Hindi discription.
ReplyDeleteBy the way, just not to confuse you more.. this is vikas (as "getinvested")
पढ़ कर लगता है जैसे औली आवाज दे रही हो !
ReplyDeleteAvishek tum toh saahityakaar ho gaye cambridge jaakar :)
ReplyDeleteBeautiful place and nice narration in hindi . Thanks for sharing
ReplyDeleteThanks Vishal :)
DeleteLovely pics...wonderful narration!
ReplyDeleteThanks Amit ji :)
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