एक कबूतर था| था, अब है नहीं | चल रहा था, बीच-बीच में फुदकता भी था, अपना छोटा सा सिर कभी आगे तो कभी पीछे करता था- बिलकुल अपनी प्रजाति के अन्य कबुतरों की तरह| हम भी साथ ही चल रहे थे पर हमारे अस्तित्व से उसे कोई परहेज़ नहीं था | डर शायद ज़रूर हो| उड़ना आता था उसे पर हमें नहीं | रात में बेसमेंट में बड़े जानवरों जैसी दिखनेवाली गाड़ियों के बीच नन्हा सा ये जीव फँस गया था| डरना लाज़िमी था और यही डर शायद हावी था उड़ान पर| शायद इसी वजह से न चाहकर भी उसे दो इंसानों के साथ चलना बेहतर लगा हो|
हमें लगा वो बहुत सहमा हुआ है, धीरे-धीरे इसे बेसमेंट से बाहर करने की कोशिश करते हैं| बाहर निकलेगा तो पेड़, आसमान वगैरह से मिलेगा| बातें होंगी तो डर शायद फीका पड़ने लगे और उड़कर ये अपने घर पहुँच जाए| मैं और मेरी बेटी यही सोचकर 'चल-चल' की आवाज़ निकालते हुए उसे आगे करने लगे| चलने तो लगा पर चाल में भी डर दिखता था| बस सिर का आगे-पीछे होना बदस्तूर ज़ारी था| अपर बेसमेंट का दरवाजा दूर था पर हम कोशिश में लगे थे|
कोई नहीं था- बस हम तीनों| सबसे आगे मार्गदर्शक की तरह कबूतर सिर हिलाते चल रहा था, उसके पीछे मेरी बेटी और सबसे पीछे मैं| हाँ एक और चीज़ थी- 'चल-चल' की आवाज़||
अचानक से एक बिल्ली प्रकट हुई| हमें तब दिखी जब कबूतर उसके मुँह में था और चप्पल मेरे हाथ में| जब तक चप्पल उस पर गिरता, वहाँ न बिल्ली थी न कबूतर| थी तो बस मेरी बेटी के रोने की आवाज़ - एक बच्चे की बेवशी जो जानवरों से बहुत प्यार करता है| इसीलिए बता रहा था - कबूतर था अब है नहीं |
This was heartbreaking... Isko please delete kar do... Nahi toh yeh hamesha yaad dilata rahega ki how hard is the face the reality of death for someone close , even though it was just 5 min of acquaintance..
ReplyDeleteKar deta delete but I feel this much right that pigeon has to be somewhere in our memory! Kuchh aur karunga uske liye…
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