Thursday, July 10, 2025

टोली

                     

बुधवार को लगनेवाली सब्जी-मंडी से इस साल बरसात की अनबन चल रही है| हफ्ते के बाकी दिन आप उमस से जलो या मरो - बादलों को कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता पर मंडी वाले दिन बिन बताए मेहमान की तरह ठीक शाम में आ धमकते हैं| बाजार में फलों को बढ़िया दिखाने वाले लाल-पीले बल्ब भी दो-चार तोड़ते हैं| 

कल फिर बारिश हो रही थी, बिजली भी चमक रही थी| कुछ बादल भी थोड़ी ऊँचाई तक आ गए थे जैसे अपार्टमेंट की छत को अपने पैर की उँगलियों से छूने की कोशिश कर रहे हों| दुकानदारों की लाचारी पर बिजली ज़ोर ज़ोर से कडककर अट्टहास कर रही थी| कुछ बच्चे उस डरावनी अट्टहास पर खिलखिलाकर हँस रहे थे और खाली पाँव यहाँ-वहाँ जमे छिछले पानी पर जम्पिंग जपांग कर रहे थे| बादल उनके लापरवाह मन पर और क्रोधित होता था, बारिश और तेज करता था पर उनकी ख़ुशी उल्टा और बढ़ जाती थी| 

एक बच्चा हाथ में पॉलीथिन लिए उनमें सबसे आगे चल रहा था- शायद ट्रूप-लीडर होगा| उसके पीछे तीन-चार छोटी-छोटी बच्चियाँ थीं - शायद इन्फैंट्री होंगी| ट्रूप लीडर के एक पाँव में लाल और दूसरे में सफ़ेद रंग का चप्पल था- दोनों के ही फीते टूटे हुए थे जिन्हें किसी पतले तार से जोड़ दिया गया था| हाथ के पॉलीथिन में एक गाज़र, एक-दो टिंडे और कुछ आलू बारिश की बूँदों के पीछे धुँधले दिखाई दे रहे थे| इन्फैंट्री के हर बच्चियों के हाथ में भी एक-एक पॉलीथिन था- कुछ खाली तो कुछ में एक-दो सब्जियाँ - हाँ!बारिश की बूँदें हर जगह थीं| इनके पाँव में चप्पल नहीं थे, चेहरे पर ख़ुशी ज़रूर थी| फटे कपड़ों में बारिश में भीगता पूरा दल और दल की ख़ुशी बादलों के शोर पर मंडी की तरफ से तमाचा था| 

काफी समय से मैं इन बच्चों को देख रहा था| नज़दीक जाकर मैंने ट्रूप लीडर से पूछा - "कहाँ रहते हो?" 
मेरे सवाल के जवाब में एक सवाल आया- "अंकल जी, एक किलो आलू दिला दोगे?" वह हल्की-सी स्माइल के साथ बोला| 
फिर पीछे से सवाल का जवाब भी आया- "हमलोग बिजली आफिस के पीछे वाली झुग्गी में रहते हैं|"
"हाँ, दिला दूँगा|" - बारिश में भीगते हुए मैंने उत्तर दिया| 
मेरा जवाब सुनकर उसकी मुस्कान हँसी में तब्दील हो गई और पीछे वाली पार्टी यहाँ-वहाँ पड़े छिछले पानी पर छप-छप करके उछलने लगी| 

आलू दिलवाकर मै आगे निकल गया| लौटने में काफी समय हो गया| जब लौटा तो बच्चे भी घर लौट रहे थे|  अब उनके पॉलीथिन थोड़े भरे से दिख रहे थे| उनका उछलना ज्यों का त्यों बना हुआ था, सबकी ख़ुशी अक्षुण्ण थी| 

"दो-तीन दिन का जुगाड़ हो गया अंकल जी" - हँसते हुए लीडर ने बोला| बदले में मैंने भी मुस्कुरा दिया| 
"बाय-बाय अंकल जी" - पूरी टोली चिल्ला रही थी| 
 


6 comments:

  1. Thank you uncle ji 😌

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  2. भीगे लम्हों में भी चमकते रहे, आँखों में सपनों के जुगनू जैसे |
    माटी में लिपटी वो जिद, गुलज़ार की किसी अधूरी नज़्म जैसे ||

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