अब सूरज तालाब के अंदर चला गया था | कुछ मछलियाँ इधर-उधर उछलती हुई धुँधली सी ज़रूर दिख रही थीं, शायद सूरज को चबा रही हों | पेड़ के नीचे का झुंड गायब हो गया था और पुलेन्दर बस्ते के साथ तालाब के किनारे आकर उन मछलियों को देखने बैठ गया था | बीच बीच में पानी में ढेला फेंकता और फिर भागती मछलियों पर ज़ोर ज़ोर से हँसता | आज उसका मन घर जाने का हो ही नहीं रहा था - कारण कल से ये पेड़, यह तालाब, वो झुंड, ये बस्ता और घर की वो सीढ़ी जो उसे सबसे प्यारी थी- सब छूटने वाला था |
उसकी अम्मा को कोई बड़ी बीमारी हुई है जिसके लिए दादा ने खेत बेचा है- ऐसा गाँव वाले बोलते हैं | अम्मा का ईलाज कराने दादा और एक दीदी बम्बई गए हैं - ऐसा उसे दादी ने बताया था | जाते वक़्त दादा ने दूसरी दीदी को कुछ पैसे दिए थे कि पुलेन्दर को हॉस्टल में डाल दो, बिगड़ता जा रहा है, गाँव में एकदम नहीं पढ़ेगा - ऐसा उसे खुद दीदी ने बताया था |
कल उसे हॉस्टल जाना है इसलिए अँधेरा होने तक पुलेंदर वहीँ बैठा रहा | रात हुई तो उसे भूतों का डर सताने लगा और बस्ता उठाकर सरपट घर की तरफ भागा |
उसका लोहे का बक्सा तैयार था जिसमें कपड़े, साबून, तेल, खाने के कुछ सामान और एक थाली-कटोरी रख दिया गया था | बक्सा देखकर ही उसका रोने का मन हुआ और भागकर वो अपनी सीढ़ी वाली गुप्त जगह पर सिसकने लगा | सबके सामने रोना उसे कमजोर दिखने जैसा लगता था | कल को पूरा झुंड अगर जान गया कि पुलेन्दर रो रहा था तो उसकी क्या ही इज़्ज़त रह जाएगी | फिर उसे लगता कि कल तो वो यहां होगा ही नहीं और रो पड़ता |
रात हुई, पुलेन्दर छत पर जाकर तारों के साथ खेलने लगा | अम्मा के साथ रोज-रोज तारों की अलग-अलग बनावट खोजना उसका सबसे पसंदीदा काम था | कब आँखें लगीं उसे पता ही नहीं चला |
सुबह दरवाजे पर तन्नू का रिक्शा आकर लग गया | वो बक्सा- जिसमें पुलेन्दर का सारा घर समाया था, रिक्शे पर रख दिया गया | उस छोटे से घर को लिए पुलेन्दर दीदी के साथ जहानाबाद के हॉस्टल में पहुँच गया | छोड़कर आते वक़्त दीदी ने बस इतना कहा - " ठीक से रहना " | पुलेन्दर रिक्शे के पीछे-पीछे मेन रोड तक आया था और तब तक रिक्शे को देखता रहा था जब तक वो आँखों से ओझल न हो गया... हाथ से दोनों आँखों के आँसू पोछते हुए फिर हॉस्टल के अंदर चला गया था |
हिंदी की कक्षा चल रही थी कि बाहर से दरवान की आवाज आयी - पुलेन्दर कुमार !!! गार्जियन आए हैं | किसी भी बच्चे के अभिभावक के आने पर दरवान यही वाक्य दोहराता था - बस नाम बदलकर | पुलेन्दर बाहर आया तो देखा दीदी आयी है, बोली - घर चलो ! तुम्हें लिवाने आये हैं | कुछ दिन रहके आ जाना | पुलेन्दर बहुत खुश हुआ | रिक्शे पे बैठा तो शहर से गुजरते हुए उसे अपना गाँव दिखने लगा- वो पेड़ , मैदान, तालाब, घर की सीढ़ी , दोस्तों का झुंड - सोचकर ही उसके मन में गुदगुदी होने लगी | जाके सबसे पहले क्रिकेट जमा देना है, फिर मछलियों और कुत्तों पर मिलके ढेला चलाएंगे - बाल-मन सोचता रहा और तन्नू के रिक्शा का पहिया घुमता रहा |
कुछ ही समय में रिक्शा घर के बाहर पहुँच गया | पुलेन्दर रिक्शा से कूदकर अहाते के अंदर भागा तो उसे सबसे पहले दीदी दिखाई दी जो बम्बई गई थी | वो और खुश हो गया , चिल्लाते हुए घर के अंदर जाने लगा- अम्मा ! अम्मा ! तभी उसे दीदी पकड़ ली और रोने लग गई फिर वहाँ एक-एक करके सब रोने लगे | पुलेन्दर को समझ नहीं आया कि क्या हुआ, तभी उसकी नज़र दादा पर गयी - धोती पहने, बाल छिलवाए वो बैठे थे | बस इतना बोले - अम्मा नहीं आयी, बोली अब कभी नहीं आ पाएगी पर जाते वक़्त ये बोलकर गई थी कि पुलेन्दर को बोल दीजियेगा कि ध्यान से पढ़ाई करे ऊपर से सब हम देखेंगे |
पुलेन्दर भागता हुआ सीढ़ी के पास गया - वही उसकी गुप्त जगह |
रोया, बहुत रोया फिर उसका झुंड आया और सब मैदान में क्रिकेट खेलने चले गए |
थका हुआ रात को लौटा , छत पर सबके साथ सोने गया | घर में किसी को नींद नहीं आ रही थी | सब बस आँख खोले आसमान को देखते हुए बिछावन पर लेटे हुए थे | मरघट सी शान्ति थी |
पुलेन्दर तारों में अम्मा को ढूंढ रहा था और एक जहाज़ बनाने का प्लान बना रहा था जिससे उस तारे तक पहुँचा जाए |